दादरी के साम्प्रदायीक दंगो पर जनता का रूझान ।
नोएडा :-
दादरी के साम्प्रदायीक दंगो पर जनता का रूझान गुजरते वक्त के साथ – साथ कहीं न कहीं ऊत्तर प्रदेश सरकार भी ईसका जिम्मेवार है । प्रशासनिक लचर रवैया भी ईस भरकाव का एक अहम हिस्सा है । सरकार ईसलिये की ऊनकी प्रशासनिक क्रिया कलापों का कोई लेखा जोखा ऊनकेे पास नही ।
प्रशासन ईसलिये’ की प्रशासन चुस्त दूरूस्त रहता तो शाायद ईस तरह की घटना नहीं होती । ईन तमाम घटना या प्रकरण को हम अगर देखते हैं तो पाते हैं की कहीं न कहीं प्रदेश सरकार व प्रशासन दोनों जिम्मेवार हैं । जनता की क्या जनता तो एक मोहरा है बॉकी राजनैतिक पार्टीयॉ भी कम नहीं जलती आग में रोटीयॉ सेकने का काम करती है । दंगोें के नाम पर ओवैसी के साथ-साथ तमाम दिग्गज नेताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया क्या बि०जे०पी० क्या कॉग्रेस क्या सपा यहॉ तक के केजरीवाल भी बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं चुके । बल्की ऊन्होंने तो डूबकी लगाना ही ऊचित समझा ये तमाम राजनैतिक पार्टियों का एक अहम हिस्सा बन गया है ।
जनता को चाहिये की अपने समझदारी से काम ले कोई हिंन्दु के नाम पर तो कोई मुस्लिम के नाम पर दंगों के लिये ऊसकाते हैं तो चल परते हैं अपनी कोैम के नाम पर विवाद को बढ़ावा देने । सबसे पहले तो यह सोचना चाहिये की ईंसानियत तो अपने आप में एक धर्म है । मानवता से बढ़कर कोई धर्म नही है । जिस दिन हर ईंसान को यह समझ आ जाये बिवाद खत्म हो जायेगा । पर राजनैतिक बिवसता के कारण व वोट बैंक को जब तक अहमियत व तबज्जो मिलता रहेगा तब तक ईस तरह की मानसिकता में बदलाव नहीं आ सकता । राज्य सरकार व केन्द्र सरकार को ईस पर गहन विचारकर एक शॉती व सामंजस्य का स्थापना के साथ ही कोई तर्क संगत राह अपनाना चाहिये जिससे की देश में शॉतीभंग ना हो ।
या शेर व हिरन के विचार को छोड़कर गाय को हीं राष्ट्रीय पशु के तोैर कानूनी प्रक्रीया लागू कर देनी चाहीये जिससे की जो भी ईस प्रक्रीया के तहत आये ऊसपर ऊचितन कानूनी कार्यवाही की जा सके । पर दूर्भाग्य है ईस देश का की कानून तो और भी तमाम है अमल के नाम कागजों पर हीं सिमट कर रह जाता है । ऐसे में जनता मरती है तो सरकार पैसों से मूॅह में मूखाग्नी का काम कर बैठती है ईससे बढ़ावा साबित होता है ।
आखीर जनता करे तो क्या ?